Friday, October 23, 2020

Past, Present, Future

  आज 23 अक्टूबर 2020 को कृष्णईष्ट दरबार मे कृश्नांश कथा करवाई मनिदेवकी ने। श्री शिव का जल अभिषेक, पुष्प अर्चन, और प्रार्थना करके शुरू हुई कृश्नांश कथा।

मनिदेवकी ने बताया कि past यानी पिछली सांस, जो बीत गयी, future यानी अगली सांस, पता नही आएगी या नही। जीवन वर्तमान में है, यानी अभी जो सांस चल रही है। 

History से हम सीख सकते हैं कि क्या करने पर क्या results प्राप्त होंगे।जैसे रामायण से सीख सकते हैं कि किस्मत कुछ नही होता, राम का राज्याभिषेक होना तय था, फिर भी वनवास लेना पड़ा उन्हें।

महाभारत के characters से सीख सकते हैं, कि कौन क्या करता है, और results कैसे आये। काली मां की कथा के माध्यम से बताया कि रक्तबीज को मारा उन्होंने। और महाभारत के समय, कृष्ण के आह्वान पर उन्होंने युद्ध में सभी योद्धाओं को मारा। वही काली अब कलियुग में निश्छलमाता के रूप में आई और संतुष्टि इपदेवी में merge हो गईं। 

कलियुग में कृश्नांश भगवान 64 रूप में ब्रह्मांड की देखभाल कर रहे हैं। आपको पता होना चाहिए कि आपको इच्छा क्या है। जो चाहिए, उसी के भगवान रूप से आपको प्राप्त करना होगा। deservingness अपनी बढानी जरूरी है, जिसके लिए puja के procedures follow करने होते है । 

Youtube channel manidevki पर कृश्नांश कथा देखे

https://youtu.be/K6vONY-7BJ4

Sunday, February 17, 2019

व्यर्थ नहीं होने देंगे हम तेरी शहादत ए शहीद

व्यर्थ नहीं होने देंगे हम  तेरी शहादत ए शहीद

जिस मिटटी पर तन तेरा  गिरा,
जिस खून से खेली तूने होली,
अब वही सजेगा और  फबेगा 
हर मस्तक पर ए शहीद

व्यर्थ नहीं होने देंगे हम  तेरी शहादत ए शहीद

तू गम ना कर, इस देश में, 
अब भी पलते रखवाले हैं
मातृभूमि  पे मर मिटने वाले, 
लाखो करोडो मतवाले है
सर नहीं झुकने देंगे हिन्द का, 
हम कसम ये खाते हैं 

 व्यर्थ नहीं होने देंगे हम  तेरी शहादत ए  शहीद

जिस दिन मिटटी पे मरने वाले ही मिटटी में मिल जाते हैं,
उस दिन लहू हैं  लगते कांपने , 
और धरती अम्बर हिल जाते हैं,
अब खैर नहीं है दश्मन की जो छिपकर घात लगाते हैं

व्यर्थ नहीं होने देंगे हम तेरी शहादत ए शहीद 

मणिदेवकी 
(पुलवामा में शहीद हुए जवानो को नमन )

Thursday, February 14, 2019

ईष्ट, गुरु, अध्यापक और शिक्षक

ईष्ट है वो , जो हो आपके गुरु का guide। हर परिवार( माता, पिता, संतान) में दो गुरु होते हैं:
माता है बच्चों की गुरु
पति है पत्नी का गुरु
यहां हमे फर्क समझ लेना चाहिए, शिक्षक, अध्यापक, गुरु और ईष्ट का।
शिक्षक यानी जो predefined syllabus को तय समय सीमा में पूरा कराये। आजकल के प्रचलित schools में शिक्षक होते हैं।
अध्यापक यानी जो अपने अनुभव द्वारा पढाये और सिखाये। ऐसी शिक्षा सही दिशा में हो तो विद्या कहलाती है। विद्यालय में अध्यापक विद्या दान देते हैं।
गुरु यानी जो शिष्य की योग्यता पहचान कर उसे दिशाज्ञान दे, अपनी योग्यता बढ़ाने की। माँ बच्चो की पहली गुरु इसीलिए कहलाई।
ईष्ट यानी जो गुरु को दिशा दिखाए। ईष्ट हर स्थिति को समझकर सही दिशा दिखाने की योग्यता रखता है, इसलिए पूजनीय है।

Friday, February 8, 2019

महिला सशक्तिकरण, क्या मात्र एक परिकल्पना?

महिला सशक्तिकरण, क्या मात्र एक परिकल्पना?
महिला सशक्तिकरण तभी संभव है जब महिलाओं को मुक्ति मिले अपनी सभी प्रकार की शारीरिक समस्याओं से। मात्र बीमारी का इलाज उपलब्ध कराने की बजाय मुख्य बिंदु होना चाहिए अपनी सेहत की देखभाल करना सिखाने पर। साफ सफाई के साथ ही महिलाओं के लिए जरूरी है अपनी मानसिक सेहत ठीक रखने के लिए, अपने शरीर में समय समय पर होने वाले बदलावों को समझकर, किसी भी बीमारी को आने से रोकना।
लेकिन हमारे समाज की विडंबना रही है, महिलाओ की सेहत के बारे में बात भी करना वर्जित रहा है, ऐसे में महिला सशक्तिकरण मात्र एक स्वप्न जैसा ही लगता है।
परंतु अब स्थिति में बेहतरी आयी है, और एक जागरूकता जन जन तक पहुंची है कि महिलाओं के अधिकारों की रक्षा होनी ही चाहिए। अब भी दिशाज्ञान न होने के कारण, सेहत महिला की और उसके परिवार की गिरती ही जा रही है।
इसी स्थिति में सुधार के लिए देवात्मा समाज की सेक्रेटरी मणिदेवकी निधि अग्रवाल ने मुहिम चलाई है, जिसके तहत महिलाओं को सिखाया जाता है, की 6 वर्ष की उम्र से ही अपने आंतरिक अंगों को स्वस्थ, सुदृढ़ कैसे रखा जाए, जिससे महिला प्रसन्नचित मन से अपने परिवार की देखभाल कर पाए, अपना आत्मसम्मान बरकरार रखते हुए।
निष्ठायोग एक ऐसी टेक्नोलॉजी विकसित की गई है ETPO नामक संस्था द्वारा, जिसके द्वारा विधिवत प्रैक्टिस करने से, महिलाये अपनी सभी समस्याओं से समय रहते निजात पा सकती हैं, और मात्र 20 मिनट प्रतिदिन लगाकर स्वयं पर, एक सेहतमंद जीवन और सुखी परिवार की प्राप्ति पूर्णतः संभव होने लगती है।
आवश्यकता है, निष्ठायोग का प्रचार प्रसार सरकार द्वारा किया जाए, स्कूली शिक्षा में निष्ठायोग को अनिवार्य किया जाय, और हम अपनी आने वाली पीढ़ी के सभी प्रकार से स्वास्थ्य की न सिर्फ कामना करें, बल्कि सुनिश्चित करे।
स्वस्थ दाम्पत्य जो कि समाज की नींव है, वह भी तभी संभव है जब महिला अपने जीवन को पीड़ा सहने के लिए अभिशप्त ना माने, माँ को भी यह सिखाया जाना चाहिए कि बढ़ती उम्र की बेटी की देखभाल कैसे करनी है, जिससे मासिक पीड़ा और इंफेर्टिलिटी जैसी परेशानियां बेटी को न देखनी पड़े।
भारतीय संस्कृति की एम्बेडेड टेक्नोलॉजी(BSkiET) के तहत चलाये जाने वाले सभी प्रोग्राम तलाक जैसे कीटाणु को हमारे समाज से पूर्णतया हटाने के लिए हैं, जो कि तभी हो सकता है, जब माँ अपने गुरुपद को समझे और संभाले, स्वस्थ शरीर और स्वस्थ मन के साथ। जय हिंद।

Monday, February 4, 2019

Learning( knowledge) vs Earning(gyan)

शिक्षा ग्रहण vs विद्या उपार्जन
हिंदी एक बेहतरीन माध्यम है, टेक्नोलॉजी समझने और समझाने के लिए।
शिक्षा ग्रहण करने के लिए बहुत से तरीके प्रचलित हैं, जैसे कि
टीचर से सीखना
पुस्तक पढ़ना
परंतु विद्या अर्जित की जाती है, यानी अपनी निष्ठा जागृत करके ही विद्या उपार्जन की प्रक्रिया प्रारंभ हो सकती है। महाभारत से हम यदि देखे तो विद्या उपार्जन के लिए तपस्या तो थी, परंतु दिशा ज्ञान नही था। इसी कारण, भीष्म और कर्ण जैसे गुणी पुरुष भी अकाल मृत्यु को प्राप्त हुए।
दिशा ज्ञान प्राप्त करना अब कलियुग में संभव बनाया तत्वज्योतिष ने।
जन्म से ही साथ क्या लाये हैं, और किस दिशा में अपने कौशल्य को विकसित करें, यही जानने की प्रक्रिया ज्ञान है। और ज्ञान से ही संभब है, विद्या उपार्जन।
जय कृष्णेन्द्र
मणिदेवकी

कृष्णांश दर्शन ( Preface)


कृष्णांश दर्शन

अपने गुरूजी द्वारा दिखाए मार्ग संभव पर चलकर संभव हुए दर्शन कृष्णांश के. मणिदेवकी के कृष्णांश भगवान हैं कलियुग के महावतार—महाविष्णु साक्षात इस धरा को सनातन पथ की ओर अग्रसर करने हेतु पधारे और जाने गए कृष्णांश भगवान.
भगवान से मिलन संभव तभी जब अपनी मन की आँखों को निष्छलता के जल द्वारा निर्मल किया जाये. दर्शन भगवान के कोई कोई विरला ही कर पाता है. इस घोर कलियुग में कृष्णांश से मिलना न केवल संभव, बल्कि सरल भी बनाया स्वयं भगवान ने.
केदारनाथ से सफाई अभियान २०१३, जून में प्रारम्भ करवा कृष्णांश विलुप्त तो अवश्य हुए लेकिन अदृश्य कभी नहीं. इन आँखों को कृष्णांश के दर्शन सुलभ नहीं, लेकिन जाते हुए वे दे गए मानवता को एक ऐसा अस्त्र जिसे चलाकर स्वयं को योग्य बनाना संभव है.
कृष्णांश के दर्शन की पिपासा यदि मन में है, समझें – यही इशारा है प्रकृति का, यही सन्देश है माँ भारती, पृथ्वी यानि भामणि का, कि उठो! अब और देर ना करो पुत्रों और पुत्रियों. अपने भगवान् से मिलो, स्वयं को निष्छल करके दर्शन करो कृष्णांश के.
              “ कृष्णांश बसे मेरे दिल में
                कृष्ण बसे मेरी नाभि में,
                राम बसे मेरे रोम रोम
                कृष्णेद्र बसे सब जोड़ जोड़ “

अश्वनीजी तत्वज्योतिष द्वारा लिखित इन 4 पंक्तियों के माध्यम से जीवन का दर्शन समझा जा सकता है.

5 तत्वों का पुतला ये प्राणी, सिर्फ शरीर, बुद्धि या मन ही नहीं है, बल्कि ह्रदय है, जो कि प्रतिक्षण भगवान के होने का आभास करवाता है धड़कन द्वारा. इसी ह्रदय स्पंदन से न केवल यह शरीर कार्य करने के लिए उर्जा पाता है, बल्कि मन में विचार भी आता है (पूर्व एकत्रित कर्मफलो अनुसार)
Ref: अग्रसेन वंशज गीत:

कृष्णांश का वास ह्रदय में है, यानि अपने कृष्णांश तत्व को जागृत करके दर्शन करना संभव होने लगता है. कृष्णांश तत्व जागृत कैसे हो, क्या हैं भगवान् के दर्शन के नियम, यही बताने के लिए इस पुस्तक की रचना कर रही हूँ .

मणिदेवकी



Tuesday, January 29, 2019

बढ़ती हुई उम्र और गिरता आत्मविश्वास


उम्र 40 वर्ष के पास पहुँचते ही अक्सर शुरू होती है शारीरिक व्याधियाँ और मानसिक तनाव से जूझते हुए कब आत्मविश्वास डिगना शुरू होता है, अमूमन पता भी  नहीं चलता ∣ 

जैसे जैसे उम्र बढ़ती है, वैसे वैसे शरीर कमजोर सा पड़ता महसूस होता है∣ इसे aging यानी बुढ़ापे की ओर आगे बढ़ना कहा गया है ∣

समस्या यह है कि कम उम्र में जब अपने शरीर की देखभाल करनी सीखनी थी, तब धन कमाने की प्रतियोगिता में कैसे अव्वल आएं सीखना प्रारम्भ हो जाता है | यही सीखना जब दिशाहीन होता है तो न्यौता दिया जाता है अनगिनत बीमारियों को| क्योंकि लालच और ईर्ष्या का पेड़ कब बढ़कर बीमारी के फल देने लगा, इसका पता last stage पर ही लगता है | 

क्योंकि अक्सर energy और समय धन कमाने में ही व्यतीत किया गया इसलिए इलाज भी खरीदने का प्रयास करते हैं लोग | 

"मर्ज बढ़ता गया ज्यों ज्यों दवा की"

और  शुरू होता है सिलसिला कभी न ख़तम होने का |  


 


मणिदेवकी